
जश्न
March 20, 2021
अर्चना कोहली 'अर्चि' / April 01, 2024
"सुन यार। बहुत तेज़ भूख लगी है। पीज़ी में तो कुछ कायदे का मिलता नहीं । खाना देखते ही भूख मारी जाती हैं। ऊपर से इतनी मिर्ची भरी होती है कि खाने से ज्यादा पानी गटकना पड़ता है। कुछ पैसे हैं क्या तेरे पास! आज मृदुल सर ने तो कॉलेज में इधर-उधर इतना दौड़ाया कि पूछो मत। कभी लैब तो कभी लाइब्रेरी। इससे भूख और बढ़ गई।" संजय ने विनीत से कहा।
"भूख तो मुझे भी बहुत लगी है यार, पर जेब में तो थोड़ी-सी चिल्लर ही है। आज सोमा को पैसों की ज़रूरत थी तो उसे दे दिए। दो दिन बाद दे देगी। "
"ओ दानवीर कर्ण। अब क्या करें। लगता है आज पीज़ी में ही खाना पड़ेगा।" उदासी से संजय ने कहा।
अच्छा खाना खाने के लिए पैसे की नहीं दिमाग की जरूरत होती है यार।"
"क्या मतलब।"
वो देख। सामने बेंकेट हॉल। सजावट देख लग रहा है, किसी की शादी है। हम भी घुस जाते हैं। किसी को पता नहीं चलेगा।"
"ना बाबा न। पकड़े गए तो बड़ी किरकिरी होगी।"
"कुछ नहीं होगा। मैंने ऐसी कितनी शादियाँ अटेंड की हैं। बहुत ही सिंपल फंडा है। लड़की वाले पूछेंगे तो कहेंगे लड़के वालों की तरफ़ से हैं। लड़के वाले पूछेंगे तो कहेंगे लड़की वालों की तरफ़ से हैं। क्या तैयार है, बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनने? मुझे तो बहुत भूख लगी है। मैं तो चला। कितने दिनों बाद इतना स्वादिष्ट खाना खाने को मिलेगा।"
"रुक मैं भी आता हूँ। जो होगा देखा जाएगा।"
"कार्ड दिखाएँ प्लीज। उसके बिना अंदर नहीं जा सकते।" गार्ड ने दरवाज़े पर रोकते हुए कहा।
"कुछ पता भी है, मैं किसका बेटा हूँ।" विनीत ने रोब झाड़ते हुए कहा।
"किसी के भी हों। कार्ड के बिना कोई भी अंदर नहीं जा सकता। हमें सख्त हिदायत है। यह इस बैंकेट हॉल का नियम है। भले आप सीएम के रिश्तेदार हों या बेटे।"
"ठीक है भई। संजय कार्ड दिखाना।"
"कार्ड । कौन-सा कार्ड विनीत।"
"अरे, शादी का कार्ड! घर से चलते समय कहा था न मेज़ से उठा लेना। विनीत ने एक आँख दबाते हुए संजय से कहा।
"ओह। मैं तो भूल गया।"
यार तुम तो बहुत भुलक्कड़ हो।" बनावटी गुस्से से संजय ने विनीत से कहा।
"भाई साहब। माफ़ कीजिए। कार्ड तो हम घर में भूल गए। लेने गए तो दो घंटे लग जाएँगे।"
"फिर तो मैं आपको अंदर जाने नहीं दे सकता। आजकल बहुत भुक्कड़ मुफ्त का खाना खाने घुस जाते हैं।" गार्ड ने कहा।
"हम क्या शक्ल से ऐसे लगते हैं। संजय ने रोष से कहा।
"सभी ऐसे ही कहते हैं। बिना कार्ड दिखाए तो नहीं जाने दूँगा। या जिसकी तरफ़ से हैं, उनको फोन करके बुलाइए या नाम बताइए।"
"चलते हैं यार। जहाँ इतना अपमान हो, वहाँ क्या जाना। चल विनीत। संजय ने कहा।"
"इतना शोर क्यों हो रहा है?" मैनेजर ने आकर गार्ड से पूछा।
"इनके पास न तो कार्ड है न ही इन्हें किसी का नाम पता है। न ही फोन करके किसी को बुलाना चाहते हैं। " गार्ड ने मैनेजर को देखते ही कहा।
"इन्हें बाहर का रास्ता दिखाओ रामपाल। आराम से नहीं जाएँ तो पुलिस की मदद ले लेना। ऐसे कितने ही अब्दुल्ला बेगानी शादी में रोज़ ही आते हैं।"
"बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से बाहर निकले" कहकर विनीत ने संजय का हाथ पकड़ा और बाहर की और चल पड़ा। तभी लता मंगेशकर और मुकेश का गाया गाना गूंँज उठा, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।
शर्म से संजय और विनीत ने नज़रें नीची कर ली और तेज़ी से मोटरसाइकिल पर बैठकर पीज़ी की और रुख किया।
अर्चना कोहली 'अर्चि'
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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