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वो खनकती आवाज़

अर्चना कोहली 'अर्चि' / December 2, 2023

पिछले एक सप्ताह से मयंक कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। उसकी दिलकश मुसकान, बात- बात पर ठहाके लगाने की आदत गायब हो गई थी।  इसका कारण था, एक अजनबी सी लड़की का मेट्रो में चढ़ते समय उससे टकरा जाना।

उसके लंबे घुँघराले बाल,  तीखे नैन नक्श, और उसकी सादगी किसी को भी वश में कर सकती थी। ऊपर से उसकी हिरनी जैसी मतवाली चाल और नीली आँखें तो कयामत ही ढा रही थी। उसे देखकर लगा कि  ईश्वर ने उसे बहुत फुरसत से बनाया है। उसके बारे में मैं सोच में ऐसा निमग्न हुआ कि उसके मेट्रो से उतरने का भी पता न चला।

इसके बाद वह मुझे नजर ही नहीं आई। उसके बारे में तो कुछ भी तो मुझे पता न था। बहुत कोशिश करने पर भी उसकी प्यारी-सी सूरत मेरी आँखों के आगे से हटती ही नहीं थी। जाने क्या कशिश थी उसमें कि मन उसकी ओर खिंचता चला जा रहा था।

एक-एक करके दस दिन गुजर गए। उसका कोई अता पता न चला। बहुत कोशिश करने पर भी उसे भुला न पाया।

फिर एक दिन ऑफिस में बॉस ने उसे कमरे में बुलाया। वहाँ उस लड़की को देखते ही चौंक गया। यह और यहाँ!

मन ही मन सोचने लगा, सच में दुनिया बहुत छोटी है। अनायास मेरे मुँह से निकल पड़ा, “आप”।

“तुम इसे जानते हो।” बॉस ने हैरानी से पूछा

“हाँ भी नहीं भी।” मैंने कहा।

“मतलब!”

“कुछ दिन पहले सड़क पर अनायास मुलाकात

हुई थी”। लड़की ने मेरे बोलने से पहले ही तपाक से कह दिया ।

“ओह”।

“सर आपने मुझे बुलवाया था,” मयंक ने पूछा।

“यह रीमा है। आज से यहीं पर काम करेगी। इसे काम समझा देना। और हाँ घर खोजने में भी मदद कर देना। जब तक घर नहीं मिल जाता, तब तक रीमा गेस्ट ऑफिस में रहेगी”।

कुछ ही दिनों में हमारी दोस्ती हो गई। प्रॉपर्टी डीलर की मदद से जल्द ही मकान भी मिल गया।

जितना अधिक उससे मुलाकात होती थी, उसे अपना जीवनसाथी बनाने की इच्छा बलवती होती जाती थी।  पर डरता था, कहीं मेरे बारे में कुछ गलत न सोचे। कहीं उसने मेरे बारे में गलत सोच लिया तो पूरे ऑफिस में बात फैल जाएगी।  फिर मेरी जो किरकिरी होगी सो अलग।

लेकिन कहते हैं न! इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते।मेरे हाव-भाव से शायद उसे भी कुछ अंदेशा हो गया था। इसी कारण एक दिन शनिवार को पता नही क्या सोचकर मौका देखकर मेरे हाथ में एक कागज पकड़ाकर तेजी से चली गई। उसमें उसने अपने घर के पास वाले कॉफी होम में शाम चार बजे मिलने को कहा। पहली मुलाकात में कोई परेशानी न हो, इस कारण नीचे अपना व्हाट्स एप नंबर भी लिखा था। मैंने रीना का व्हाट्स एप नंबर सुरक्षित कर लिया।

सुबह उठते ही आशा के विपरीत सुप्रभात का संदेश था। मैंने भी सुप्रभात करके उसके डीपी की तारीफ कर दी। उसके बाद शांति।

बताया गया कॉफी होम मेरे घर से पांच मिनट की दूरी पर था। 3: 30 बजे मैं घर से निकल पड़ा और नियत समय से पहले ही पहुँच गया।

ठीक चार बजे रीना के दर्शन हुए। गुलाबी रंग की साड़ी में वह बला की खूबसूरत लग रही थी।

उसने  वेटर को बुलाकर दो कॉफी का ऑर्डर किया।

कुछ देर तक चुप्पी के बाद  उसने कहा, “मुझे कुछ दिनों से लग रहा है, आप मुझसे बात करना चाहते हैं। निसंकोच कहिए”।  

अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए मैंने नजरें नीची किए हुए कहा, “क्या  आप मेरी हमसफर बनेगी”?

उसने कहा, “आप मेरे बारे में जानते ही कितना है? आपकी जानकारी के लिए बता दूं, मैं अनाथ हूँ। मुझे कोई अनाथ आश्रम में छोड़ गया था। मेरे माता-पिता कौन हैं, आश्रमवालों को भी पता नहीं। फिर भी क्या आप मुझसे विवाह करना चाहेंगे”।

मैंने उससे कहा, “इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं।

उसने कहा, मैं तुम्हारे परिवार की रजामंदी से ही विवाह करना चाहूँगी, अन्यथा नहीं”। कुछ देर की बातचीत करके के पश्चात हम उठ खड़े हुए। फिर अपने-अपने गंतव्य की ओर चल पड़े।

उसकी साफ़गोई से मैं बहुत प्रभावित था। उसके बारे में घर पर उसी रात मैंने डिनर के बाद बातचीत की। जैसा कि अंदेशा था, माता-पिता नहीं माने।

मैंने उसे सारी स्थिति व्हाइट एप पर बता दी और जल्द ही माता पिता को समझाने का आश्वासन दिया। आशा के विपरीत उसकी खनकती हँसी सुनाई दी। उसने मुझसे वादा लिया, “जब तक मेरे माता-पिता नहीं मानते। तब तक हम नहीं मिलेंगे और न ही फोन करेंगे”।

एक महीने के बाद आशा के विपरीत मेरी शादी तय हो गई। मुझमें हिम्मत नहीं थी, उसका सामना करने की।  इसी कारण मैंने ऑफिस से छुट्टी ले ली। उसे व्हाट्स ऐप द्वारा अपने विवाह की बात बता दी।

मुझे कोई खुशी नहीं थी। विवाह संपन्न हो गया।

कमरे में जाना नहीं चाहता था। धकेलकर पहुँचाया गया।

सबके जाते ही मैंने नींद का बहाना करके सोना चाहा, तभी एक परिचित-सी खनकती आवाज सुनाई दी। “मेरा घूंघट नहीं उठाएंगे क्या”!

में उठ बैठा। घूंघट के पीछे रीना को देखते ही चिल्ला पड़ा, “तुम”।

ऐसा लगा, मानो सुगंधित बासंती बयार ने मेरा तन-मन पुलकित कर दिया हो।

“हाँ मैं। तुम्हारी उदासी देख मैंने तुम्हारे घर का पता मालूम किया। उनसे मिली। इसका नतीजा तुम्हारे सामने है”।

“पर मुझे बताया क्यों नहीं”।

“हम सबने मिलकर यह तय किया था। कैसा लगा सरप्राईज”।

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