Poems


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ये बेटियाँ

अर्चना कोहली 'अर्चि' / August 20, 2016

किस मिट्टी की बनी होती हैं बेटियाँ
हर माहौल में ढल जाती हैं बेटियाँ।
घर-आँगन में खुशियाँ ही भर देती
माता-पिता के दिल का नूर होती।।

राजकुमारी जैसे नाजों से पलती
कभी मर्यादा-बेड़ी से जकड़ी होती।
परायेपन के अहसास से ही जीती
इक घर की खोज में सदा रहती ।।

खुशी-गम का सागर समेटे रहती
सौम्यता-कठोरता का मेल होती।
पक्षी की तरह इधर-उधर चहकती
तो कभी शांति-मूरत नजर आती।।

जीवन में सामंजस्य बनाकर रखती
माँ की प्रतिच्छाया-मुसकान होती।
पिता का गौरव और सम्मान होती
कोहिनूर के समान अनमोल होती।।

शादी से पहले तितली समान होती
चहुँ और चहकती-फुदकती रहती।
छोटी-छोटी बातों पर रूठ जाती
खाने के लिए नखरे करके सताती।।

शादी के बाद वह कैसे बदल जाती
संकोच-अदृश्य दीवार खींच लेती।
परिवार की खातिर सब झेलती
कटु-वार्ता चुपचाप सहन करती।।

रोशनाईं बनकर घरों को सजाती
दोनों घरों की दृढ़ नींव कहलाती।
परिवार बिखरने नही देती बेटियाँ
किस मिट्टी की बनी होती बेटियाँ।।

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