प्रदूषण
November 30, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / October 28, 2023
गौरवशाली है निज संस्कृति, गढ़ती थी संस्कार।
पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है, अनुपम है उपहार।।
निर्झरिणी बहे संस्कार की, यही हिंद पहचान।
जिससे होते सदा परिष्कृत, सदा गुणों की खान।।
आत्मा यही आर्यावर्त की, होती जीवन सार।
गाथा शाश्वत मूल्यों की, फैली चहुँदिश डार।।
गीता-रामायण सब इसमें, बिखरी है वह आज।
मर्यादा पर लगा प्रश्न है, जिस पर पहले नाज।।
नैतिकता के सतत क्षरण से, होते हैं संग्राम।
सीता-पांचाली निमित्त हैं, ज्ञात युद्ध परिणाम।।
लिया जन्म जिसके आँचल में, करती वह चीत्कार।
हुआ मर्म पर अब प्रहार है, भूले शिष्टाचार।।
मानवता रक्षित है इसमें, दया-अहिंसा मूल।
औंधी पड़ी अब संस्कृति है, देखे चुभते शूल।।
करनी मिलकर रक्षा सबको, भरने सुंदर रंग।
करें वहन मिल भारतवासी, रहे संस्कृति संग।।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
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