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अभी भी समय है

अर्चना कोहली 'अर्चि' / May 17, 2024

अभी भी समय है

"रोहन बेटा। अभी भी समय है। शालिनी को रोक लो नहीं तो घर बिखरते देर नहीं लगेगी।" माँ ने कहा।

"जाने दो उसे। बहुत घमंड है न अपने पर। दो दिन में ही अक्ल ठिकाने आ जाएगी।" रोहन ने गुस्से से कहा।

"घमंड उसे नहीं तुम्हें है अपने पैसे का, अपने पुरुष होने के दंभ का। शालिनी ने तो इस घर की बेहतरी में अपनी काया को धूप की तरह जलाया है।  प्रेम की खाद और विश्वास का पानी देकर इसे सँवारा है। तभी तो यह मकान  घर बन पाया है। एक बार सोचकर तो देखो, क्या गलती शालिनी की थी। नहीं तो चचेरे भाई शेखर की तरह सब कुछ खो दोगे।"

"माँ शायद तुम सही कह रही हो। गुस्से में मैंने कुछ ज्यादा ही कह दिया। मैं इस बगिया को सँवारने वाले माली को कहीं नहीं जाने नहीं दूँगा।" कहकर सामान बाँधती शालिनी को मनाने रोहन अंदर चल पड़ा।

अर्चना कोहली 'अर्चि'
मौलिक और स्वरचित

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