क्रंदन मानवता का
November 1, 2022
अर्चना कोहली 'अर्चि' / May 01, 2024
कैसा आया वक्त है, बदली हाथ लकीर।
मार बुढ़ापे ने दिया, बनता गया फकीर।।
फटा बाँस समझा मुझे, बना दिया लाचार।
कितना अब मजबूर हूँ, माना अब है भार।।
संतति के हाथों तुझे, मिलता है अपमान।
माना जिनको जान था, कर रहे परेशान।।
बूढ़ा क्या मैं हो गया, किया हृदय से दूर।।
टूट गया विश्वास है, दुख से होता चूर।।
काया अब कमज़ोर है, थके हुए हैं पाँव।
नहीं प्रिया अब साथ है, जलता मानो आँव।।
घुटे हृदय अब कोठरी, अब हो रहा उदास।
बातें किससे मैं करूंँ, भरती रहे खटास।।
रखें भरोसा निज सदा, मत घबराना शूल।
खुली अभी भी राह है, कर्म जिंदगी फूल।।
सभी काम ही श्रेष्ठ हैं, रख पास स्वाभिमान।
क्यों सहता दुर्गति सदा, चलना सीना तान।।
सुन मन की आवाज़ अब, कर फिर से शुरुआत।
मत हिम्मत अब हारना, ढलती अब है रात।।
नाटक के किरदार हम, निभा रहे बस धर्म।
लेखा-जोखा भाग्य में, करते चलना कर्म।।
अर्चना कोहली 'अर्चि'
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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