हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / November 1, 2022
चहुँदिश में क्रंदन मानवता का पड़ रहा सुनाई है
झूठ के हाथों तिरस्कृत हो रही आज सच्चाई है।
नारी का मर्दन करने बढ़ रहे दुशासन-दुर्योधन हैं
युद्ध की विभीषिका से फैला हर तरफ़ रुदन है।।
आतंकवाद से देश में बह रही रुधिर की नदियाँ
सुरक्षित नहीं घर में भी कच्ची कोमल कलियाँ।
भीड़ में भी अकेलेपन के दंश से जूझता इंसान
माता-पिता का अपमान करती है रोज़ संतान।।
आधुनिकता की दौड़ में रिश्ते रह गए हैं नाम के
सुख-समृद्धि-लालच ही हैं बस उनके काम के।
कहीं गरीबी के कारण बेच दी अपनी संतान है
तो कहीं उदर में बेटियों को मार बना हैवान है।।
धृतराष्ट्र-भीष्म सम मौन देख रहे सब अन्याय
किसी को नहीं आता है नज़र कोई भी उपाय।
सत्य-प्रतिष्ठा हेतु नारायण की फिर है दरकार
तभी होगा मानवता का देश में फिर से प्रसार।।
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