प्रदूषण
November 30, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 25, 2024
देखा है सपना नया, आया जो है साल।
प्रियवर करते काम हैं, बीन रहे वे दाल।।
करती गपशप फोन पर, फैले बिस्तर पैर।
मिलता सब कुछ हाथ में, खुशी रही है तैर।।
घूमे सखियों संग हम, खाते मिलकर चाट।
बना साल यह खास है, खिलता रहे ललाट।।
कटती उनकी जेब है, आफत में है जान।
घिसते गाजर शीत में, कैसी मेरी शान।।
लिखते कविता बैठ कर, भरकर पूरा जोश।
नाश्ता उनका गोल है, किधर रहा यह होश।।
मोबाइल में ध्यान है, चले उँगलियाँ तेज़।
अवसर अच्छा है मिला, कैसा यह है क्रेज।।
सरदी लगती ज़ोर से, करती मैं आराम।
पीती मग भर चाय मैं, खाती हूँ बादाम।।
चढ़ी कढाई गैस पर, बना रहे पकवान।
देती आर्डर मैं सदा, वे हुए परेशान।।
ऑफिस होती देर है, चढ़ता तभी बुखार।
डाँट बॉस की सोचते, सिर पर होता भार।।
देखा अद्भुत स्वप्न यह , आया ऊँट पहाड़।
चाहूँ अब अवकाश मैं, किया तभी खिलवाड़।।
अर्चना कोहली 'अर्चि'
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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