आवरण
September 20, 2016
अर्चना कोहली 'अर्चि' / April 03, 2024
सदा भूख से तड़पे संतति, दुर्बल उसका अंग हैं।
जीवन में इच्छा बस रोटी, बिन उसके वे तंग हैं।।
उछले सदा उदर में चूहे, माँ के मन में हूक हो।
देखे दिल के टुकड़े को जब, रोती रहती मूक वो।।
कैसी उसकी ये लाचारी, भरती मन में पीर है।
कैसे तृप्त करे वह उसको, चाहे वह इक तीर है।।
लिपटाकर बालक को तन से, चूमे उसका भाल है।
कब तक हालत ऐसी होगी, क्यों सहता यह बाल है।।
कैसे बेबस ये निर्धन हैं, बिंधे होते शूल से।
बिकती चीज़ें धीरे-धीरे, बनते कैसे फूल वे।।
नौनिहाल वे हैं भारत के, मिलता दुख का ताज है।
पाता मुश्किल से खाना है, करता रहता काज है।।
कैसी व्यवस्था यह विधि की, काली उनकी यामिनी।
क्यों है ऐसा भाग्य हिस्से, छिपती है सौदामिनी।।
मन-भर भोजन वह भी चाहे, बिखरा सुंदर रंग हो।
परिश्रम सदा वह करती है, फिर भी रहती तंग वो।।
समझा पीड़ा शिशु अंबा की, क्यों भीगे अब कोर है।
हाथों से पोंछे बहता जल, देखे उसकी ओर है।।
कहता, पेट भरा है जल से, कैसे खाऊँ भात अब।
देता झूठा वह आश्वासन, जानें अंतस बात सब।।
अर्चना कोहली "अर्चि"
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
We'd love to hear from you! Send us a message using the form below.
Sector-31 Noida,
Noida, U.P.(201301), India
contact@archanakohli.com
archanakohli67@gmail.com