हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 9, 2022
ओ कान्हा! आतंक से देश का हो गया बुरा हाल है,
दुर्योधन-दुशासन का सर्वत्र ही फैल गया जाल है।
संकट सभी के मिटाने आप तुरंत दौड़े चले आते हो,
सच्चे भक्त को मनोवांछित वर दे सुख देते जाते हो।
झूठ ने जब भी भू पर अपनी काली चादर फैलाई है,
तभी ही आपने अवतरित होकर सच को बचाया है।
ओ गिरधर, आपने पैदा होते ही लीला अपनी दिखाई,
कारागार में बंद माता-पिता के उद्धार की राह बनाई।
खेल-खेल में ही संकट का समाधान आप खोज लेते,
सच्चे मीत का वचन निभाकर रंक से राजा बना देते।
ओ मोरपंखी, आपने ही अर्जुन को गीता-उपदेश दिया,
अजर-अमर आत्मा के रहस्य से मीत को अवगत करवाया।
निस्वार्थ भाव से जो आपकी भक्ति सदैव करता है,
दुख की परछाई से वह सदा ही कोसों दूर रहता है।
भक्ति में तुम्हारी मीराबाई ने सुध-बुध अपनी खोई,
सूरदास ने हमें सगुण भक्ति की सुंदर राह दिखलाई।
इंद्रदेव के अभिमान नाश हेतु गोवर्धन पर्वत उठाया,
कालिया नाग के शाप से कालिंदी को मुक्त करवाया।
आश्रय में जो भी द्वारकाधीश आपकी आ जाता है,
वैतरणी को पार करने का मार्ग उसको मिल जाता है।
चावल के एक दाने से दस हजार का पेट भर दिया,
दुर्वासा ऋषि की क्रोधाग्नि से पांडवों को बचा दिया।
आप ही तो असहाय पांचाली के रक्षक बनकर आए,
ओ मुरलीधर, राधारानी के मन में आप ही तो समाए।
इसी कारण अहिदिन भक्ति में आपकी डूबना चाहती,
हर मधुबन-कुंज में आपकी ही छवि को पाना चाहती।
आपके बिना किसी को भी मैं सहारा नहीं मानती हूँ,
सर्वदा से आपकी प्रीत में समय बिताना चाहती हूँ।
आज भी पांचाली समान नारियों पर होता प्रहार है,
ओ कृष्ण, रक्षा करने फिर से आपकी ही दरकार है।
कभी भी अपनी कृपा-दृष्टि मुझ पर से नहीं हटाना,
अंतर्मन की गहराइयों में सदैव मुझे ही जगह देना।
चित्र आभार: pixabay
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