बेटी मुझ पर बोझ नहीं
November 18, 2022
अर्चना कोहली 'अर्चि' / June 7, 2021
कारखाने में छंटनी हुई तो उसमें रोहित का भी नाम था। भविष्य के बारे में सोचकर वह चिंतित हो गया, अब क्या होगा? घर का गुजारा तो किसी तरह हो जाएगा पर बच्चों की पढाई! इन सब के बारे में सोचते-सोचते कब घर आ गया, पता ही नहीं चला।
कारखाने से निकाले जाने की बात सुनकर पत्नी ने कहा, चिंता मत करो। कोई न कोई रास्ता निकल आएगा।
पत्नी ने ऊपर से तो पति रोहित को दिलासा दे दिया था, लेकिन अंदर से वह भी परेशान थी। कैसे होगा! घर के गुजारे के साथ-साथ बच्चों के भविष्य की भी चिंता थी।
सारी रात विचार करने के पश्चात उसने सोचा, क्यों न ऑनलाइन बच्चों को पढ़ाया जाए! आखिर वह बी.ए. पास थी।
बस फिर क्या था, उसने इंटरनेट पर ऑनलाइन पढ़ाने के लिए खोज करनी आरंभ कर दी। मित्रों से भी सहायता ली।
एक महीना बीतते-बीतते उसे तीन बच्चे मिल गए।
बड़ी बेटी भी कथक नृत्य जानती थी। उसे कथक में विद्यालय से कई इनाम भी मिले थे। हालात को जानकर माता-पिता के मना करने के बावजूद उसने भी छोटे बच्चों को कथक सिखाना आरंभ किया।
छोटे भाई-बहन ने भी हरसंभव सहायता की।
छह महीने के अंदर ही स्थिति सुधरने लगी। रोहित ने एक कैमिस्ट शॉप में नौकरी कर ली।
दो साल के बाद स्थिति बेहतर होने पर रोहित ने कपड़ों का होलसेल व्यापार शुरू किया। इसका श्रेय वह अपने संपूर्ण परिवार को देता है, जिनकी बदौलत यह सबकुछ हो पाया।
सच ही है, सकारात्मकता, धीरज और अपने ऊपर विश्वास से सब कुछ पाया जा सकता है।
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