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बनारसी साड़ी

अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 27, 2021

दादी को एक बनारसी सिल्क साड़ी पर हाथ फेरते देखकर मुग्धा से रहा नहीं गया। पूछ ही बैठी, दादी आपको यह साड़ी पसंद है न!

दादी ने नजरें चुराते हुए कहा, नहीं रे! तेरी मां के लिए सोच रही थी। उसपर यह रंग बहुत फबेगा। कपड़ा भी बहुत अच्छा है। बिलकुल मखमल जैसा।

पर दादी माँ को तो यह रंग बिलकुल भी पसंद नहीं है। न विश्वास हो तो पापा से पूछ लो। मुग्धा ने कहा।

बिलकुल ठीक। हरा रंग तो आपको ही पसंद है। घर में तो किसी को भी सिल्क की साड़ी पहनना ही पसंद नहीं है। राहुल ने मुसकराते हुए कहा।

अब जल्दी से शॉपिंग खत्म करो। मैं थक गई हूँ। मैं तो मना कर रही थी। यही जिद करके ले आई। बात पलटते हुए दादी ने कहा।

ठीक है दादी चलते हैं। बस दो मिनट।

पापा आप दादी को लेकर चलिए। मैं बिल देकर आती हूँ।

ठीक है।

भैया यह साड़ी भी पैक कर देना।

घर आकर…

दादी यह आपके लिए।

क्या है?

बनारसी सिल्क साड़ी! मेरी प्यारी दादी के लिए।

अब मेरी उम्र नहीं है ऐसी साड़ी पहनने की। जब थी, तब घर के हालात ठीक नहीं थे। फिर जिम्मेदारियों के कारण मेरी इच्छाएँ मन में ही दफन हो गई। फिर अब किसके लिए सजना-सँवरना, दादी आँखों में आँसू लाकर बोली।

दादी। दादू को तो मैं नहीं ला सकती, पर आपको तो थोड़ी-सी खुशी तो दे ही सकती हूँ। फिर यह तो सोचो, दादू स्वर्ग से आपको इस साड़ी में देखेंगे तो बहुत प्रसन्न होंगे।

मुग्धा ठीक ही कह रही है, सबने कहा।

लोग क्या कहेंगे?

लोगों का तो काम ही है, कुछ-न-कुछ कहने का। मुग्धा की माँ मीना ने कहा।

पर मेरी उम्र तो देखो।

उम्र होने से क्या हम मनमर्जी से पहन नहीं सकते क्या। अभी तो मेरी दादी को मेरी शादी में नाचना भी है। लोग जो मर्जी कहें। यह साड़ी मेरी तरफ से उपहार है। आखिर पोती की शादी है।

सब यह सुनकर हँस पड़े।

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