बेटी मुझ पर बोझ नहीं
November 18, 2022
अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 20, 2021
दिव्या को इमली खाना बहुत अच्छा लगता था। जब भी वह बाज़ार जाती, कुछ इमली भी खरीद लाती। रात को बिस्तर पर बैठकर मज़ा ले-लेकर खाती।
बचपन के सुनहरे समय के बाद दिव्या ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रख दिया, लेकिन उसका इमली-मोह नहीं गया। मां-दादी-मौसी सब समझाती, अब तो बचपना छोड़ दे।
फिर एक दिन दिव्या की शादी का दिन भी आ गया। विदा के समय उसकी छोटी बहन ने सबसे छिपाकर उसे एक पाउच में इमली दी। रोते-रोते भी दिव्या मुसकरा दी।
ससुराल में सारा दिन रस्मों में बीत गया। रात ग्यारह बजे गप्प-शप करने के बाद जेठानी-ननदों द्वारा दिव्या को कमरे में पहुंचा दिया गया। इसके बाद सब अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। पतिदेव भी थोड़ी देर बातचीत करने के बाद दिव्या को सोने का कहकर करवट बदलकर सो गए। दिव्या भी लेट गई।
नई जगह, नया माहौल। दिव्या को नींद नहीं आ रही थी। वह उठकर बिस्तर पर बैठ गई। थोड़ी देर बैठी रही, फिर पाउच से इमली निकालकर चटकारे ले-लेकर खाने लगी। चपर-चपर की आवाज़ से पति की नींद खुल गई। नाइट लैंप जलाया। देखा, दिव्या इमली खा रही है।
इमली खाने में दिव्या इतनी मग्न थी कि उसे दीन-दुनिया का होश ही नहीं था। पति सुधांशु ने मुसकराते हुए नाइट लैंप बंद किया और सो गए। इस बारे में सुधांशु ने किसी से कोई बात नहीं की और न ही दिव्या से कुछ पूछा।
दो-तीन तक ऐसे ही चलता रहा। सबके सो जाने पर दिव्या चटकारे ले-लेकर इमली खाती। इसके बाद एक दिन उसकी चोरी पकड़ी ही गई।
हुआ यूं कि दिव्या इमली की गुठलियों को काग़ज़ में लपेटकर कचरा बैग में डाल देती थी। सुबह नौकरानी आकर कचरा बैग ले जाती और कचरा गाड़ी के आने पर उसमें डाल देती ।
एक दिन कचरा बैग फट जाने से सारा कचरा ज़मीन पर बिखर गया। इमली की गुठलिया भी काग़ज़ से निकलकर इधर-उधर फैल गई। दिव्या के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। सबके सामने दिव्या की इमली खाने की चोरी पकड़ी गई । सासू मां भी वहीं खड़ी थी। उनके मुंह से निकल गया, बहू, तुम ! वाक्य पूरा होने से पहले ही दिव्या शरमाकर कमरे में भाग गई।
समय बीतता गया। दिव्या-सुधांशु की शादी को बीस वर्ष हो चुके हैं। आज भी सुधांशु इस बात को नहीं भूले और अपने बच्चों को यह किस्सा हंस-हंसकर सुनाते हैं।
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