हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / November 04, 2024
सेल्फी की इस दौड़ में, मानवता दी त्याग।
बनता दर्द मजाक है, मानव अब तो जाग।।
करुणा होती लुप्त हैं, हो निर्धन अपमान।
जोर दिखावे का हुआ, अपना करें बखान।।
कहाँ ध्यान परहित रखें, कैसा आया दौर।
भागे पीछे शान के, इस पर करना गौर।।
कहते इसे विकास हैं, रिक्त पेट हैं दीन।
खींचे बस तसवीर हैं, तड़पें दरिद्र मीन।।
आभासी संसार में, बदले कितने लोग।
खातिर ही निज नाम की, सजती थाली भोग।।
सेल्फी ली हर पोज की, दिया नहीं पर साथ।
करें बहाना बस मदद, नहीं बढ़ाते हाथ।।
करो महसूस कष्ट को, मन से करना भान।
सदा वेदना दूर हो, ऐसा तुम लो ठान।।
सबके दुख को बाँट लो, करना यही प्रयास।
नहीं कभी पग को हटे, मुख उनके हो हास।।
उबटन हो संवेदना, भूले सारी पीर।
झलके सच्ची अब खुशी, पोंछों सबके नीर।।
धर्म मनुज का रे निभा, मोबाइल को छोड़ ।
सार्थक अपना जन्म कर, खुशियों का ये मोड़।।
अर्चना कोहली 'अर्चि' (नोएडा)
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