वो गुजरा ज़माना
May 05, 2024
अर्चना कोहली 'अर्चि' / May 17, 2024
अनमोल उपहार
"आ गया नीलेश तू। कितनी देर से राह देख रही थी। कितनी गर्मी पड़ रही है। ऐसा भी क्या ज़रूरी काम था जो शाम तक रुक नहीं सकता था। लू लग जाती तो। बैठ मैं तेरे लिए नीबू पानी बनाकर लाती हूँ। और तेरे हाथ में यह पैकेट कैसा।" मांँ नीलिमा ने कहा।
"मम्मा। आप बैठिए। कुछ देर में बना देना।
पहले यह देखिए मैं आपके लिए क्या लाया हूँ।" पैकेट खोलते हुए नीलेश ने कहा।
"अरे वाह! सूरज का सातवाँ घोड़ा और आवारा मसीहा। तुझे कैसे पता, मुझे ये उपन्यास चाहिए थे। कितना खोजा बाज़ार में मिले ही नहीं।"
"मालूम है मुझे। जब हम सब पिछले सप्ताह बाज़ार गए थे तो आप इन्हें ही खोज रही थीं।"
"कहाँ से मिली बेटा।"
"नई सड़क से लाया हूँ माँ।"
"मेरे लिए इतनी धूप में गए। इतनी भी क्या जल्दी थी।"
"अपनी प्यारी माँ के लिए मुझे इसे जल्दी से जल्दी खरीदना था। क्योंकि तुम भी तो अपने सब काम छोड़कर मेरी हर इच्छा पूरी करती हो। याद है आपको मैंने अपने पिछले जन्मदिन पर जगजीत सिंह की ग़ज़लों के कैसेट की इच्छा जाहिर की थी। उस समय आपकी तबियत भी सही नहीं थी फिर भी उसे खोजने के लिए आपने पूरा शहर छान मारा था। इसके लिए आपको पिताजी से भी डाँट पड़ी थी।" पुस्तकों को माँ के हाथ में थमाते हुए नीलेश ने कहा।
यह सुनकर नीलिमा की आँखें खुशी से भर आईं।
अर्चना कोहली 'अर्चि'✍️✍️
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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