मोहताज
November 15, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / April 16, 2024
चाहत
"अरे, सिमरन। शायद मैं गलत समय पर आ गई। तुम शायद कहीं जा रही हो।" सामान बाँधती सिमरन को देख उसकी सहेली आकांक्षा ने कहा।"
"ठीक समझा। बस आज रात की बात है। फिर मैं अपनी चाहत के साथ अपनी अलग दुनिया बसाऊँगी।" फिर मैं आज़ाद। मम्मी-पापा के अनुशासन में मुझे घुटन महसूस होने लगी थी। ऐसा लग रहा था, जैसे मैं एक कैद में हूँ। अच्छा है, मम्मी-पापा घर में नहीं हैं। मेरा भागने का रास्ता साफ़ है। सिमरन ने चहकते हुए कहा।
"क्या! दिमाग तो सही है तुम्हारा। माता-पिता का घर तुम्हारे लिए कैद है। जिस घर ने तुम्हारे सपनों को पूरा किया। अपनी चाहत के लिए अपने मम्मी-पापा को जीवनभर का दुख दे देना सही नहीं है। फिर जिस रंजन के साथ तुम भागना चाहती हो, क्या जानती हो, उसके बारे में। कैसा लड़का है, उसके मम्मी-पापा कौन हैं, कहाँ रहते है? दो महीने के परिचय में अंकल-आंटी के पच्चीस वर्ष के त्याग को भुला बैठी। फिर क्या पता, वह तुझसे प्यार करता भी है या नहीं। क्या पता उसे केवल पैसा चाहिए या कुछ और। मुझे तुमसे इस नासमझी की उम्मीद नहीं थी"।
"शायद तुम सही कह रही हो। मुझे माफ कर दो। शायद मैं बहक गई थी। तुमने मेरी आँखें खोल दी। यह मैं क्या करने जा रही थी। रंजन ने ही कल मुझे घर से भागने के लिए उकसाया था। धन्यवाद आकांक्षा। तेरे जैसी दोस्त पास हो तो कोई भी सिमरन भटक नहीं सकती।"
"दोस्ती में धन्यवाद और सॉरी का कोई स्थान नहीं। बस एक वादा करो, आगे से कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाओगी।"
"पक्का वाला प्रॉमिस", कहकर सिमरन खिलखिला उठी।
अर्चना कोहली 'अर्चि'
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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