गणपति वंदना
September 4, 2022
अर्चना कोहली 'अर्चि' / August 28, 2024
देख क्रूरता काल यवन की, छाया था आतंक।
महादेव के वरदहस्त से, नृप था बहु
निश्शंक।।
चिंतित जग सारा उससे था, शरण तभी ली कृष्ण।
ललकारा तब उसको हरि ने, किया खत्म जंक।।
रणनीति कृष्ण ने अपनाई, अद्भुत उनकी चाल।
छोड़ कन्हैया रण से भागे, फैलाया था जाल।।
मौत मिली मुचुकंद हाथ से, ऐसा था वरदान।
अद्भुत-अप्रतिम-अनुपम लीला, बुरा शत्रु का हाल।।
छिपे गुफा में केशव जाकर , लीन निद्रा मुचुकंद।
भस्म असुर जो था बलशाली, हुई साँस थी बंद।।
जरासंध गुस्से से भड़के, मन में जलती आग।
मथुरावासी पीड़ित इससे, नंदलला से द्वंद।।
दिव्य बसाई नगरी तब थी, रखा द्वारिका नाम।
रणछोड़ कृष्ण तब कहलाए, त्यागा जब निज धाम।।
लिया जन्म खातिर सच की था, किया सतत कल्याण।
राधा के दिल के जो बसिया, करें गंभीर काम।।
मधुकर से चंचल गोपाला, कहें कमल सम नैन।
खेल-खेल में दानव मारे, बीती काली रैन।
दिया ज्ञान गीता का रण में, भागा अर्जुन मोह।
सतत अमर माधव गाथा है, सुनना सब ये बैन।।
अर्चना कोहली 'अर्चि' (नोएडा)
मौलिक और स्वरचित
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