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गणेश चतुर्थी

अर्चना कोहली 'अर्चि' / July 14, 2021

“पापा जी, इस बार घर पर हम बड़े से गणेश जी लायेंगे, मेरे सभी दोस्त हर साल बड़ी धूमधाम से गणेश जी की बड़ी मूर्ति लाते हैं”, मयंक ने कहा।

“बेटा! किसी की देखा-देखी नहीं करनी  चाहिए। भगवान तो श्रद्धा-पुष्प अर्पित करने से प्रसन्न होते हैं।” हर्ष और विभा ने समझाते हुए कहा, लेकिन मयंक के बहुत जिद करने पर मान गए।

माता-पिता की हाँ से मयंक के चेहरे पर जो मुसकान आई, उसके आगे तो दुनिया के तमाम सुख बेकार है। कुछ देर बाद वो चहकता हुआ पिता जी के साथ बाजार की और चल पड़ा और माँ घर की व्यवस्था देखने।

आखिर वो घड़ी आ गई, जब बैंड-बाजे  के साथ मयंक और हर्ष ने गणपति के साथ घर मे प्रवेश किया।

“लेकिन यह क्या! बड़े गणेश के साथ नहीं छोटे-छोटे मिट्टी के बने गणेशों की मूर्तियों की एक टोकरी के साथ।”

माँ को हैरानी से मूर्तियों को देखते देख मयंक बोला, “वहाँ एक छोटा बच्चा इसे बेच रहा था। कोई भी उससे मूर्तियाँ नहीं खरीद रहा था। उसके चेहरे पर मायूसी देखकर मैंने पिता जी से कहकर सारी मूर्तियाँ खरीद ली। फिर माँ आपने ही तो कहा था, भगवान जी श्रद्धा और प्रेम भाव से खुश होते हैं। खुशियाँ तो बाँटने से बढ़ती हैं न!”

“मेरा मयंक तो बहुत समझदार है, पर इतनी सारी मूर्तियों का हम क्या करेंगे!” माँ ने कहा।

“पास की बस्ती में बाँट देंगे। इसी बहाने वो भी गणेश चतुर्थी मना लेंगे। “हर्ष ने  कहा।

“अरे वाह! बड़ा मजा आएगा। माँ अब जल्दी से गणेश स्थापना कर दें। फिर हम सब बस्ती चलेंगे। साथ में आप प्रसाद भी रख लेना, जो आपने बनाया है।” मयंक ने उछलते हुए कहा।

“ठीक है बेटा। ” माँ ने हँसते हुए कहा।

गणेश स्थापना करते समय विभा को लगा, मानो गणेश जी मुसकरा रहे हैं। लगा, गणेश जी तो वास्तव में इसी वर्ष उनके घर आए हैं।

चित्र आभार: unplash

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