बेटी मुझ पर बोझ नहीं
November 18, 2022
अर्चना कोहली 'अर्चि' / June 17, 2021
अरे वाह मित्र! तुम्हारे पास तो हिंदी-संस्कृत पुस्तकों का विपुल भंडार भरा पड़ा है। तुम तो एक पुस्तकालय खोल सकते हो। पुस्तक की अलमारियों की और निगाह डालते हुए शिव ने कहा।
धन्यवाद मित्र। पुस्तकें तो मेरी अक्षय निधि हैं। मैं तो इन्हें बहुमूल्य धरोहर मानता हूं।
वैसे तुम्हारे पास कौन-कौन-से लेखकों की पुस्तकें हैं।
मुंशी प्रेमचंद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महादेवी वर्मा, शरतचंद्र , जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह दिनकर, कालिदास, भवभूति आदि सभी विख्यात लेखकों की पुस्तकें मेरे पास हैं।
क्या पढते भी हो या संग्रह करने का ही शौक है, शिव ने मुसकराते हुए पूछा।
बिलकुल मित्र। तुम जो अलमारियों में सजी पुस्तकें देख रहे हो, उनमें से अधिकांश पुस्तकें मै पढ चुका हूं।
संस्कृत की भी। शिव ने संजीत से हैरानी से पूछा।
संस्कृत मुझे ज्यादा आती नहीं है। संस्कृत तो दादा जी, पिता जी और रीमा पढते हैं। लेकिन इन पुस्तकों में जो लिखा गया है वह सब जानकारी मुझे पिता जी, दादा जी और रीमा से मिलती रहती है।
अंग्रेजी की कोई पुस्तक रखने का मन में कभी विचार नहीं आया।
जो आनंद अपने देश की भाषाएं-बोलियां पढने में है, वह अन्य भाषा में कहां! साथ ही अपने देश की संस्कृति को जानने का सबसे सशक्त माध्यम पुस्तकें ही होती हैं।
तुम्हारा प्रिय लेखक कौन-सा है?
वैसे तो मुझे सभी की रचनाएं पसंद हैं। लेकिन शरतचंद्र के उपन्यास पढना मुझे विशेष रूप से प्रिय है। उनकी ज्यादातर रचनाएं मै पढ चुका हूं।
तुम्हें तो यह संग्रह बनाने में बहुत समय लगा होगा।
बिलकुल। लेकिन इस संग्रह को बनाने में मेरे परिवार का भी भरपूर योगदान है। संस्कृत का पूरा संग्रह तो दादा जी, पिता जी और रीमा के सहयोग के बिना तो बन ही नहीं सकता था।
मित्र फिर तो मैं जब चाहूं तुमसे पुस्तकें लेकर पढ सकता हूं। अब मुझे पुस्तकें खरीदने के लिए जगह -जगह भटकने की जरूरत नहीं है।जब चाहूं मैं तुम्हारे पास आ सकता हूं।
माफ़ करना मित्र। मैं तुम्हें पुस्तकें नहीं दे सकता। इन पुस्तकों में मेरी आत्मा बसती है।
अरे मित्र! पढकर वापस कर दूंगा। लेकर कहीं चले थोड़े जाऊंगा, शिव ने हंसते हुए कहा।
नहीं मित्र। जो भी पुस्तक लेकर जाता है या तो वह वापस नहीं करता या ऐसी हालत में वापस आती है कि रोना आ जाता है। ऐसा मेरे साथ एक बार नहीं कई बार हो चुका है। इसीलिए मैंने तय किया है, किसी को कभी भी कोई पुस्तक उधार नहीं दूंगा।
मित्र कैसी बात कर रहे हो। मुझे भी उन जैसा समझते हो क्या!
नाराज मत हो। यह कहावत तो सुनी होगी, दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है। अपनी दरियादिली के कारण बहुत भुगत चुका हूं। अब और नहीं। वैसे भी धन और पुस्तक किसी को उधार नहीं देना चाहिए। रिश्ते में दरार पड़ जाती है।
शायद तुम ठीक कह रहे हो मित्र। माफ़ करना।
We'd love to hear from you! Send us a message using the form below.
Sector-31 Noida,
Noida, U.P.(201301), India
contact@archanakohli.com
archanakohli67@gmail.com