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कलंक की आँच

अर्चना कोहली 'अर्चि' / December 09, 2024

कलंक की आँच 

"इस बीना की यह आदत बहुत खराब है। जब मन किया घर बैठ जाती है। कभी फोन कर देती है तो कभी फोन स्विच ऑफ करके चुपचाप बैठ जाती है एकाध महीने को छोड़ दें तो हर महीने सात-आठ छुट्टी तो पक्का होती ही हैं। काम तो बहुत अच्छा करती है, इसलिए इतना सहन करती हूँ नहीं तो निकाल बाहर करती। तीन दिन की छुट्टी लेकर गई थी, हरिद्वार जाना है, सात दिन हो गए।" अनामिका ने मन ही मन गुस्से से बुदबुदाते हुए कहा।

किस पर इतना गुस्सा कर रही हो, अखबार से नजरें उठाते हुए महेश ने कहा।

"जी वही बीना और कौन। जब देखो घर बैठ जाती है। मैं तो तंग आ गई।"

"ओह! मैं तो समझा ये फूल मुझपर बरसाए जा रहे हैं। ठंड कर यार। आ जाएगी।" 

आपको घर का सारा काम करना पड़े तो पता चले।।आप तो सुबह बैठ जाते हैं अखबार लेकर। आज आपकी छुट्टी है तो काम में कुछ तो हाथ बँटा दीजिए। मेरी तो कमर टूट गई काम करते- करते।" अनामिका ने कहा।

"ये क्या छुट्टी बीना लेती है पर मुसीबत मेरी आती है। अरे भई। सुबह-सुबह रोमांस की भी कुछ बात कर लिया करो। कहा ही था कि तभी अनामिका के मोबाइल की घंटी बजती है।" बीना का फोन था। 

"कौन बीना। कहाँ है रे तू? तबियत तो ठीक है। बहुत परेशान करती है। फोन तो कर दिया कर।" एक ही साँस में अनामिका ने कहा।

"मेमसाब परेशान तो मैं हो गई हूँ। छोटे बेटे-बहू के बच्चों को सँभालते-सँभालते। "

"क्यों तेरी बहू कहाँ है।"

 "वो तो माथे पर कलंक लगाकर किसी के साथ भाग गई। उसका फोन भी यहीं है। नाम कल्याणी पर काम ऐसा ।‌ मैं कुछ दिन काम पर नहीं आ पाऊँगी, इसलिए फोन किया।" रोते हुए बीना ने कहा। 

"क्या! कब हुआ ये और हरिद्वार से कब वापस आई? "

"मेमसाब। हरिद्वार तो मैं जा ही कहाँ पाई, जिस दिन जाना था, उसी दिन तो कांड हुआ, अभी और ज्यादा नहीं बता सकती। घर पर सारे लोग हैं। पड़ोसी भी इकट्ठे हैं। इस कल्याणी के कारण तो मुँह छिपाकर रहना पड़ता है। बच्चे सँभल जाएँ तो काम पर आती हूँ। फिर बताती हूँ सारी राम कहानी। कहकर उसने फोन रख दिया।"

बीना के फोन रखते ही सोच में पड़ गई, बीना ने भी क्या किस्मत पाई है। पति के गुजरने के बाद इसे एक पल का भी चैन नहीं मिला। पति ने तो इसे रानी बनाकर रखा था। उसके जाते ही सबकी आंखों की किरकिरी बन गई। कभी बड़ी बहू और बेटा तो कभी छोटा बेटा। अब छोटी बहू। पता नहीं कब इसे विश्राम मिलेगा। तभी पतिदेव की आवाज़ से तंद्रा टूटी, "मैं नहाने जा रहा हूँ। फिर नाश्ता ले आता हूँ। तुम्हें भी कुछ आराम मिल जाएगा।"

"जी ठीक है। वैसे भी बीना की बात सुनकर आज नाश्ता बनाने का मन नहीं था। उसके साथ दिल का रिश्ता सा हो गया था। इसलिए उसके दुख में मन भर आया।"

"तुम भी। बहुत जल्दी भावुक हो जाती हो। अच्छा नहाकर आता हूंँ।" साथ ही बाहर चलते हैं। नाश्ता बाहर ही कर लेंगे।"

"नहीं। घर पर बहुत काम फैला हुआ है। फिर कभी।"
 
तीन दिन गुजर गए। तीन दिन बाद बाद सुबह दस बजे के करीब घर के बाहर एक ई रिक्शा रुका। महेश ऑफिस जा चुके थे। देखा तो बीना थी। अनामिका ने उसे चाय दी। चाय पीते ही वह शुरू हो गई।।बोली- "मेमसाब वो चुडैल मिल जाए तो नहीं छोडूँगी।"

"बीना। कितनी बार कहा, मेरे घर ऐसी बातें नहीं चलेंगी।" अनामिका ने गुस्से से कहा।

"गलती हो गई मेमसाब। पर क्या करूंँ? मेरा घर तो उसने बरबाद कर दिया। बच्चे तो बिलकुल मुरझा गए हैं। पूरा घर भी खाली करके गई है। और तो और बेटी के लिए जो सोने की बालियांँ बनवाई थीं, वो भी ले गई। 

ओह! पुलिस में शिकायत की या नहीं।"

"जी मेमसाब। कल्याणी के घर में भी बताया।
 वो बहुत शर्मिंदा है। कह रहे थे, उसे घर नहीं आने देंगे। उन्होंने भी बहुत खोजा। दो घर बरबाद कर दिए इस कल्याणी ने। इसके कारण घर से निकलना मुश्किल हो गया है। बच्चों से भी लोग बातें करते हैं, तेरी माँ भाग गई। अब बताओ क्या बच्चों से इस तरह की बातें करना सही है।"

"सही तो नहीं है। तू समझा लोगों को बच्चों से इस तरह की बातें न करें।" बच्चों पर गलत असर पड़ता है।"

"लोग कहाँ समझते हैं। स्कूल में भी बताया। कहीं उन्हें कहीं से पता चल जाए तो क्या होगा?"

"सही किया। आगे क्या सोचा है बीना।"

"अभी तो कुछ नहीं। बस पोती की चिंता है। अभी पाँच साल की तो है। हमारे माथे पर कल्याणी ने जो कलंक लगाया है उसकी आग से हम भी झुलस रहे हैं। क्या कमी थी इस घर में। कहकर उठ खड़ी हुई, मेमसाब काम कर लूँ। अब बच्चों की भी ज़िम्मेदारी मुझ पर है। इस बुढ़ापे में यह देखना और बाकी था।" भरे कंठ से बीना बोली।

" चिंता न कर, नहीं तो तेरा ब्लड प्रेशर बढ़ जाएगा।"

बीना के जाने के बाद अनामिका सोचने लगी, यह क्या किया कल्याणी ने। अपने बच्चों का भी नहीं सोचा। क्या कोई माँ ऐसी होती है जो अपने बच्चों के बारे में भी न सोचे। पंद्रह साल का रिश्ता पलों में तोड़ दे। कहाँ जा रहे हैं हम। पता नहीं कब तक कल्याणी के कलंक की आँच उनको झुलसाती रहेगी। कब तक•••कहकर वह उठ खड़ी हुई, बाकी का काम निपटाने।

अर्चना कोहली 'अर्चि' ( नोएडा)

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