Poems


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नहीं नारी है अबला

अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 12, 2023

तोड़ रूढ़ियों की बेड़ी नारी बनी सबला,

संकुचित सोच छोड़ नहीं है अब अबला।

आँखों में पानी का प्रश्न हो गया बेमानी,

अपने अधिकार के लिए लड़ी है भवानी।।

कहा तुलसीदास ने ताड़न की अधिकारी,

पर आज उसी ने ओढ़ी है बहु जिम्मेदारी।

अबला कह क्यों सर्वदा ही कम आँका है

निरंतर कोमलांगी समझकर ही झाँका है।।

अत्याचार सहकर चुप नहीं रहे आज नारी,

अबला नहीं जो मौन रह भरती सिसकारी।

दृढ़ निश्चय में भीष्म पितामह से नहीं कम,

आत्मविश्वास में रखती है पुरुषों सा दम।।

पुरुषों पर दो-दो हाथ करने का उसमें बल,

घात में बैठे विषधरों को देती हैं वे कुचल।

अबला बनकर घूँघट में नहीं छिपाया तन,

पीती भले रोज गरल है पर न करे क्रंदन।।

संकीर्ण मानसिकता को तोड़ आगे ही बढ़ी,

सड़ी-गली रूढ़ियों को बदलने को वे अड़ी।

गेह-इज्जत हेतु जीवन को बना दिया खेल,

अहम में अबला बना पीछे दिया है धकेल।।

हर युग में ही अप्रतिम नारियाँ रही सबला,

सीता-द्रौपदी-कैकेयी कोई नहीं थी अबला।

शक्ति से इन्होंने बदल डाला था इतिहास,

तो क्यों कलुषित भाव से करते हो विलास।।

अर्चना कोहली “अर्चि”

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