Poems


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संदूक नानी का

अर्चना कोहली 'अर्चि' / January 21, 2023

संदूक नानी का था भानुमती-पिटारा

असंख्य यादों का मानो वो गलियारा।

आठवें अजूबे-सा कर देता विस्मित

हरेक कोने में अलग कहानी गुंफित।।

छिपा था कहीं पर कंचों का ख़ज़ाना

तो कहीं स्लेट-तख्ती का था ज़माना।

किसी कोने में पुराने पीले पत्र-भंडार

तो कहीं सजा था गुड़ियों का बाज़ार।।

संदूक में अनेक छोटी-बड़ी पोटलियाँ

उसमें रखी नाना-नानी की निशानियाँ।

संदूक में कहीं है कन्यादान का हिसाब

तो कहीं पर  रखी है धार्मिक किताब।।

एक किनारे थे कुछ बहीखाते पुराने

खुशी-गम के भी भरे थे उसमें तराने।

धरोहर समान हर चीज़ इसमें सिमटी

रिश्तों की महक इसमें हुई है लिपटी।।

न तो हैं अब संदूक और न वो जमाना

तिजोरी का आज हर कोई ही दीवाना।

विरासत का सघन समंदर इसमें बहता

बिन कहे हरेक बात हमसे यह कहता।।

अर्चना कोहली “अर्चि”

 

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