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स्वाभिमान का प्रतीक- नारी

अर्चना कोहली 'अर्चि' / July 13, 2022

अर्चना कोहली ‘अर्चि’

तोड़ने नारी का सम्मान घूम रहे हैं विषधर
चहुँदिश में ही फैले हुए उनके नुकीले कर।
दंश से उनके बेड़ियों में जकड़ी हैं नारियाँ
आक्रांत होकर घर में सिमट गई कुमारियाँ।।

मर्दन करने उनका घर में भी छिपे हैं भुजंग
कुदृष्टि से निरीक्षण करें उनका अंग-प्रत्यंग।
भय से उनके ऊँची उड़ान पर लगी है रोक
अमर्यादित आचरण से उनके निंदित लोक।।

धन-पहुँच बल पर उनको नहीं पाते पकड
तभी जाल में पाता नहीं कोई उसे जकड़।
सुरक्षा की कोताही से बढ़ रहा अत्याचार
दिनोदिन इनके कारण हो रहा हाहाकार।।

एकता-दृढ़ विश्वास से कुचलना होगा फन
छिपे भुजंगों को खोज करना होगा दमन।
इनके कारण ही उन्नत शीश हमारा झुका
लक्ष्य-प्राप्ति के लिए बढ़ा कदम है रुका।।

तीक्ष्ण डंक को निकालना सीख गई नारी
शक्तिपुंज बनी नारी अब नहीं है बिचारी।
स्वाभिमान के लिए कर सकती है प्रहार
काली-दुर्गा का ले सकती है वह अवतार।।

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