Poems


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पुस्तक से जुड़े अहसास मेरे

अर्चना कोहली 'अर्चि' / June 7, 2022

काग़ज़ की महक से आज भी जुड़े हुए हैं मेरे जज़्बात

इसके सुंदर शब्दों में सजी हुई है हरेक युग की  बात।

विश्व के हर संघर्ष को हमने पुस्तक की जुबानी ही सुना

अंतर्मन में महकते सुंदर-से ख्वाबों को उसने ही  बुना।।

तकनीकी प्रचार से आज गिनी-चुनी उसकी साँसें  हैं

धूल धूसरित अलमारियों में जनमानस से छूटे तार हैं।

भूलने से पुस्तक-संसार सभ्यता-संस्कृति से नाता गया छूट

संस्कारों की बनाई गई नींव हाथों से हमारे गई टूट।।

विडंबना कैसी है आज अक्षय-निधि सड़कों पर बिकती है

जीवन सबका निखारने वाली स्वयं ही रोज़

टूटती है।

जिसके बल पर विश्व पर परचम हमने लहरा

दिया है

आज मित्रता को उसकी मोबाइल चक्कर में क्यों भुलाया है।।

दिनोदिन लोग उलझते ही गए फेसबुक-ट्विटर जाल में

भूलते ही गए अंतर्मन को स्पर्श करती सुंदर-सी पाती से।

प्रिय मित्र के इस हश्र से मन  मेरा भी तो प्रतिदिन रोता है

मन ही मन अस्तित्व को बचाने के प्यारे बीज बोता है।।

अनमोल धरोहर लफ्जों की अहमियत अभी भी समझ लेना

अकेलेपन के इस साथी को अपने से अलग न कभी करना।

मृदा की सौंधी महक लफ्जों की दुनिया में ही समाई है

माँ के अनमोल-प्यार-दुलार की इसमें ही तो रोशनाई है ।।

अर्चना कोहली ‘अर्चि’

चित्र आभार: unplash. Com

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