Poems


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आईना

अर्चना कोहली 'अर्चि' / May 24, 2022

आईने से अद्भुत ही सभी का प्यारा नाता है

बचपन से वृद्धावस्था तक साथ निभाता है।

मुख पर परिलक्षित हर भाव की है पहचान

खुशी-गम हो या मायूसी सबका इसे भान।।

बचपन में माँ से छिप कभी काजल लगाया

तो कभी लिपस्टिक लगाकर मन शरमाया।

उम्र बढ़ने के साथ-साथ रिश्ता हुआ गहरा

नव-स्वप्नों से संसार लगने लगा था सुनहरा।।

साज-श्रृंगार हो या गीत-संगीत का अभ्यास

दर्पण के आगे ही सदा झलक जाता उल्लास।

अल्हड़ किशोरी से बन गई मैं परिपक्व नारी

पर आज तक छूट न पाई इससे मेरी यारी।।

कोई भी दास्तां नजरों से इसकी छिपा न पाई

पल-पल बदलती जिंदगानी संग ही निभाई।

खुद की खुद से आईना पहचान करवाता है

अक्स की तरह सच्ची बात यह बतलाता है।।

देखा है इसने मुखौटे लगाया हरेक इंसान

कलियुग में उभरती हर बुराई का इसे ज्ञान।

बढ़ती उम्र सलवटों पर भी इसने गौर किया

तो दिल की कशमकश को भी इसे बताया।।

तसवीर सम यह भी मनोभावों का सुंदर बिंब

जीवन के हरेक दौर का बना सच्चा प्रतिबिंब।

चित्र आभार: Shutterstock.com

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