Poems


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अभी भी मन है मेरा मचलता

अर्चना कोहली 'अर्चि' / May 23, 2022

बालों में धीरे-धीरे सफेदी लगी है झलकने

अब नेत्रों के नीचे लगी कालिमा-सी दिखने।

असर दिखाने लगी जीवन-साँझ की ढलान

फिर भी स्मृति-अक्स में बचपन का है ध्यान।।

 

आज भले ही अनुभव का है मुझमें निचोड़

गांभीर्य का सघन लबादा है लिया मैंने ओढ़।

फिर भी मेरे अन्तःकरण में है चुलबुलापन

खिलखिलाता-हँसता मुसकराता-लड़कपन।।

 

भले ही गरिष्ठ भोजन करने लगा है मुझे तंग

पर भुला  नहीं पाया अतीत का कोई भी रंग।

रात्रि में अब नींद आती है मुझे बहुत ही कम

दवाइयाँ खाकर भी मन में नहीं है कोई गम।।

 

अभी भी याद है , उदित भास्कर की लाली

चहचहाते नभचरों से भरी वृक्षों की डाली।

भले जिम्मेदारियों के बोझ से थका है तन

लेकिन हँसी से गुलज़ार करता रहता मन।।

 

उम्र का भले ही है मेरा अंतिम ही पड़ाव

पर मन में अभी भी बसा ख्वाबों का गाँव।

यथार्थ में मन से हर किसी में बच्चा रहता

तभी बुढ़ापे में भी बचपन-सा मन मचलता।।

चित्र आभार: shutter stock.com

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