Poems


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प्यारी चिरैया

अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 28, 2022

घर के आँगन में अब नज़र नहीं आती प्यारी-सी गौरैया

चहचहाहट से अपनी मुग्ध कर देती थी छोटी-सी चिरैया।

भोर होते ही झुंड के झुंड आकर भर देते आँगन सारा

चीं-चीं  करके चहुँ ओर बहा देती थी प्रेम-रस की धारा।।

बिन उसके अब पता नहीं चलता है होने को है भोर

प्रिय चित्तचोर चिड़िया पता नहीं चली गई किस ओर।

कभी उनके कलरव से गूँजती थी वृक्ष की डाली- डाली

चुग-चुगकर फुदक-फुदककर खाती थी गेहूँ की बाली।।

संचय करके तृण-तृण एकत्र करके जो वह लाती थी

रोशनदान-खिड़की तरु कहीं पर भी बसेरा बना लेती थी।

सकोरे पर रखे पानी-बाजरे से खुशी-सरगम वह फैलाती

भूख प्यास शांत करके ऊँची उड़ान भरकर चली जाती।।

मनुज के कर्मों के दुष्परिणाम से आज आती नहीं नज़र

वृक्ष-कटाव और मोबाइल टावरों का उसपर फैला कहर।

आओ, विश्व गौरेया दिवस पर बचाने का उसे प्रण करें

स्नेह से देखभाल करके बेजुबान पक्षियों का त्राण करें।।

चित्र आभार: गूगल से

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