Poems


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फाल्गुनी बयार

अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 19, 2022

फाल्गुनी बयार से प्रीत-सी मन में लगी है छाने

न्यारे सतरंगी ख्वाबों की दुनिया लगी सजाने।

सुंदर पुष्पों की मादकता से मचल गया है दिल

रंग फागुन के प्रिय की याद से लगे हैं तड़पाने।।

अबीर-गुलाल से भी प्यारा प्रीत का तेरा रंग है

निशिदिन अंतर्मन मेरा चाहता तेरा ही संग है।

खुशी-उल्लास से चहक रहे खग और मधुकर

ऐसी सुहावनी रुत में बदला हरेक का ढंग है।।

रंग-पोटली लिए मस्त मतंग से सब नर-नारी हैं

बहु रंगों से चित्रित कपोलों की शोभा न्यारी हैं।

तेरे बिन रंगरहित लग रही है इस वर्ष की होली

राह तकते-तकते थक गए नयन मेरे हमजोली।।

प्रेम की गहरी सरगम के आगे फीके हैं रंग सारे

श्रृंगार के उपादान भी लगते नहीं हैं अब प्यारे ।

समां होगा रंगीन ढोल-मंजीरे-मृदंग की ताल से

पिया संग ही उमंग-उल्लास के फूटेंगे गुब्बारे।।

पिया संग ही रंगबिरंगे रंगों की मस्ती होती है

पिचकारी की फुहारें तन और मन भिगोती हैं।

मीठी गुजिया का स्वाद प्रिय संग लगे लुभाना

फाग ही तो सतरंगी स्वप्न के बीजों को बोती हैं।।

इसी मधुमास में मिलन होता है धरा-अंबर का

इसी फिज़ा में बिखरा रंग हैं राधा-पीतांबर का।

क्या पलाश-पुष्पों से व्याकुल हुआ न तेरा मन

जल्दी से आकर साजन रंग चढ़ा दे प्रीत का।।

चित्र आभार: unplash

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