Poems


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भारत की बेटी- कल्पना चावला

अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 11, 2022

हौसले की उड़ान से अचंभित कर देती नारी

उत्तुंग नग को भी पार करने में नहीं वह हारी।

कठिन प्रस्तरों से भी डगमगाए न उसके कदम

वीरता-आत्मबल से पुरुषों पर भी पड़ती भारी।।

 

नारियों ने हर क्षेत्र में ही अपना प्रभुत्व जमाया

स्वर्णिम अक्षरों में अपना उन्होंने नाम लिखवाया।

कल्पना चावला ऐसी  ही एक अद्भुत नारी थी

मनोबल से कल्पना को यथार्थ में ढाल लिया।।

 

खुली आँखों से देखा था स्वप्न अंतरिक्ष छूने का

उच्च उड़ान से सफर तय किया नासा तक का।

बचपन से ही चाँद-तारों से थी अति आकर्षित

बुलंद इरादे से दुष्कर लक्ष्य भेदा अंतरिक्ष का।।

 

क्रूर काल के कारण छीन गई बेटी भारत की

प्रतीक बनी देश की आन-बान और शान की।

खुली राह अंतरिक्ष की कल्पना के जज्बे से

विच्छिन्न होकर भी बनी लड़ी सुंदर सीख की।।

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