हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / October 30, 2021
आज फिर व्योम से सुधाकर इतराया है
सुहागिनों से ठिठोली करने ललचाया है।
सोलह श्रृंगार करके प्रतीक्षारत हैं नारियाँ
दोनों चांद के दर्शन की हैं सारी तैयारियाँ।।
मेघ में छिप अनोखे करतब दिखलाता है
आँखमिचौनी कर बहुत उन्हें तड़पाता है।
शरद पूर्णिमा में तो पूर्ण यौवन पर होता
लेकिन करवाचौथ में स्वयं को छिपा देता।।
निराहार-निर्जला हो कब से राह देख रही
थाली सजाकर तेरे दीदार को ताक रही।
शुभ्र चांदनी से आलोकित उर मेरा कर दो
पति की दीर्घायु का व्रत फलीभूत कर दो।।
सोलह श्रृंगार करके सबने रूप प्यारा पाया
अदभुत रूप छटा से दिल प्रिय का हर्षाया।
फल-फूल-नैवेद्य ले कबसे द्वार पे खड़ी हैं
अर्घ्य देने को तुझे खोजते हम घड़ी-घड़ी हैं।।
माँग में सभी के साजन के नाम का सिंदूर है
प्रियतम के कारण ही सबके चेहरे पर नूर है।
प्रेम-विश्वास के अट्टू-बंधन की यही रीत है
एक अति पुरातन परंपरा से जुड़ी हुई प्रीत है।।
छलनी से पिया को देखने तरसे हैं सबके नैन
सारंग के बिना नहीं किसी को आता चैन है।
भूख-प्यास से सभी की हालत बहुत पस्त है
अर्ध्य देने को मचल रहे सभी के ही हस्त हैं।।
ओ कलाधर, अब तो मेघ-झुरमुट से निकल
पिया के हाथों जल पीने को सभी हैं विकल।
साजन संग ही मनता करवाचौथ का त्योहार
पूर्ण करके सभी को मिलती है खुशी अपार।।
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