मौन कर्म की साधना
September 23, 2024
अर्चना कोहली 'अर्चि' / January 10, 2025
रुकता नहीं समय है
फिसल जाता धीरे-से मैं हाथ से
रोकने से नहीं रुकता मैं कभी भी
बहता रहता मैं नदी की धारा-सा,
बाँध न सका मुझे कोई, मैं समय हूँ।
गाथा छिपी मेरे अंदर हर युग की
कहलाता साक्षी हर परिवर्तन का
देखा राजाओं का पतन-उत्थान,
अभिमानी का सिर मैंने कटते हुए
सुनी कहानी मैंने अमिट वीरों की।
रक्तरंजित धरा को रोते भी है देखा
मौत का तांडव देख भी रुका कहाँ
नगर-नगर गुजर गए मेरी आँखों से
खँडहर हुए महल कितने पता मुझे,
पद्मावती का जौहर भी नजरों में
सपने किसके पूरे हुए या हैं टूटे,
भीतर मेरे हुआ है सारा समाया
नहीं थकूँगा सुनाते-सुनाते मैं समय
सब कुछ सुन सकोगे क्या मनुज!
अर्चना कोहली 'अर्चि' (नोएडा)
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