Poems


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समय-गति

अर्चना कोहली 'अर्चि' / August 18, 2021

समय की गति को कोई भी भाँप नहीं पाता है

हाथ से कब निकल जाए समझ नहीं आता है।

सिंधु-लहर समान अनवरत आगे बढ़ता ही रहता

लाख यत्न करने पर पीछे कभी लौट न पाता।।

घड़ी-सुइयाँ धीरे-धीरे आगे को सरकती ही रहती

समय बीतने का संदेशा हमें वह बताती जाती।

धूप-छाँव जैसे अनगिनत रंग समय दिखलाता

अपने-पराए की पहचान समय-चक्र ही करवाता।।

समय किसी के भी रोकने से रुक नहीं पाता है

हँसना-रोना सब समय-चक्र ही तो करवाता है।

समय-महत्ता समझकर जो उसके साथ चलता

वही तो महान उपलब्धियों को प्राप्त कर पाता।।

सतयुग से कलियुग तक कई रूप इसने दिखलाए

सात्विक से तामसी प्रवृति तक यही हमें ले जाए।

बचपन से वृद्धावस्था तक समय ही तो ले आया

परिश्रम-बल पर किस्मत बदलना इसने सिखलाया।।

अतीत-इमारत पर ही सुंदर भविष्य-नींव खड़ी होती

अतीत के अनुभवों से ही सुंदर सीख हमें मिलती।

समय-महत्ता को समझ जिसने भी सदुपयोग किया

उसी ने ही कामयाबी-परचम सर्वत्र फहरा दिया।।

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