Poems


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प्यारे गाँव में बसना चाहूँ

अर्चना कोहली 'अर्चि' / August 9, 2021

सौंधी-सौंधी मिट्टी महक नथुनों में भर जाती

हरित-वृक्षों की सुंदर पंक्तियाँ   गाँव याद दिलाती।

शुद्ध घी-दूध और मिठाइयों का वास है जहाँ पर

शीतल-मन्द हवा के झोंके चलते रहते वहाँ पर।।

प्रात:काल की सुंदर लाली के दर्शन वहीं  पर होते

विहगों की सुंदर चहचहाहट मन हमारा मोहते।

प्रकृति की अद्भुत-सुंदरता गाँवो में नजर आती

चौपाल पर बैठकर मित्रों की मंडली वहीं जमती।।

पोखर-तालाब को भला कैसे कोई भूल जाए

गाँव जैसा अपनत्व भला महानगरों में कहाँ पाए।

प्यारे त्योहारों की असली-मस्ती गाँव में ही है

उड़ती पतंग के पीछे भागते बच्चों की टोली है।।

हँसी-ठिठोली से सर्वदा गली-मोहल्ले गूंजते रहते

शादी-ब्याह में बिन भेदभाव के मिल काम करते।

प्राण-वायु आक्सीजन से प्रदूषण वहाँ हवा हुआ है

शीतल-सुहानी हवा से ए.सी. भी अब फेल हुआ है।।

प्रकृति के सुंदर सानिध्य में रोग कोई हो न पाता

निज भाषा-बोली सम्मान भी वहीं पर पाया जाता।

गोधूलि मे पशुओ की चहल-पहल नजर आए

मिट्टी से बने घरों से निज देश की सुगंध पाए।।

काश! सरल-सरस ग्रामवासी गुण अपना जाऊँ 

गाँव जैसा ही सुंदर शहर अपना बना पाऊँ  ।

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