हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / August 8, 2021
प्रिय! पहले का क्या ही सुंदर-प्यारा जमाना था
दो दिलों के मिलने का पाती ही तो बहाना था।
दिल की बात जब जुबान पर न आ पाती
तब प्रेम भरी पाती ही साथ उनका निभा जाती ।
प्रिय के काम पर जाने पर सजनी उदास होती
तीव्र विरहाग्नि जब उसे बहुत ही तड़पाती।
तो छिप-छिपकर पाती प्रेम की पढ़ती रहती
मंद-मंद कभी मुसकाती तो कभी हँसती।।
पत्र का आदान-प्रदान भी तब खूब होता था
सजनी द्वारा टिफिन बॉक्स में छिपाया जाता था।
तो प्रिय द्वारा इसे श्रृंगार-बॉक्स में रखा जाता था
चोरी पकड़ी जाने पर मजाक भी खूब उड़ता था।।
भविष्य के सभी सपने रंग-बिरंगे कागज में होते
सुख दुख के अनकहे किस्से भी व्यक्त किए जाते।
नयनों से दो-चार बातें भी इससे ही की जाती
एक छोटी सी प्रेम-भरी पाती क्या-क्या कर देती।।
दो दिलों को मिलानेवाली वह पाती आज लुप्त है
प्रेम की वह अनोखी दुनिया आज कहीं नहीं है।
दिलों की अनकही बातों का राज इसमें ही है
मुझे भी साजन की ऐसी पाती का इंतजार है।।
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