हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / July 20, 2021
जीवन-सांझ का सूरज अब ढलने लगा है
सुंदर ख्वाब-मंजर फिर से तिरने लगा है।
फिर तेरे हाथ की बनी चाय का मजा ले लूं
संग बैठ चाय-चुस्की संग कुछ वक्त बिता लूं।।
चाय की चुस्की संग कुछ देर हम बतियां ले
जीवन का लेखा-जोखा फिर हम याद कर लें।
टूटते अल्फाज से फिर से तुझे कुछ कह दूं
भोर की पहली चाय संग तुझे निहार लूं।।
पता नहीं कब धड़कने हमारी थम जाएं
ढलती सांझ का अवसान समीप आ जाए।
उससे पहले कुछ वक्त हम संग बिता लें
सबकी नजरों से छिप कुछ पल जी लें।।
फिर से आज हम प्रेमी-प्रेमिका बन जाएं
एक दूसरे संग बैठ चाय के कप टकराएं।
गिले-शिकवे सब चाय संग ही भूल जाए
ढलते सूर्य सम हम भी कुछ रक्तिम हो जाएं।।
तेरे हाथ की बनी चाय में कुछ खास है
किसी और के हाथ में वो बात नहीं है।
आओ,फिर चाय संग पुराने दिन जी लें
ढलती सांझ में कुछ पल चाय संग बिता लें।।
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