Poems


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जल एक अमोल संपदा

अर्चना कोहली 'अर्चि' / July 13, 2021

मेघपुष्प ही इस धरा का सर्वाधिक अमोल रत्न है

वही तो हम सबके जीवन का मूल आधार है।

तीक्ष्ण दिनकर-किरणों से जब कंठ शुष्क होता

तो निर्मल-पावन नीर से ही हमें सुकून मिलता।।

बिन नीर के तो नन्हा विहग भी आतुर होता

तभी तो तलाश में उसकी दूर-दूर तक उड़ता।

हमें तो गृह-कार्यालय में शीतल-शीतल जल मिले

लेकिन चतुष्पद-चंचुभृत तो तेज धूप में जले।।

दुरुपयोग करने से भू में जल-कोश कम हुए

बिन इसके वृक्ष-लतायें-पुष्प सभी मुरझा गए।

जल-कमी से आक्रोश सबका सरकार पर फूटता

इस हेतु ही लड़ाई-झगड़ा करने को तत्पर वह होता।।

कितने ही कृषकों के घर इससे बरबाद हो गए

बाग-खेत-खलियान सभी ही शोभाहीन हुए।

अगर अभी भी सदुपयोग इसका न करेंगे

तो सुंदर भू पर इस बिना कैसे जी पायेंगे।।

जल की हरेक बूँद में जीवन सभी का बसा है

सबके आह्लाद का कारण इसी में तो छिपा है।

इसलिए जनहित में संरक्षण सभी इसका करना

पीयूष-धार बचा प्राण बचाने का सब यत्न करना।।

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