Poems


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लक्ष्मणप्रिया उर्मिला

अर्चना कोहली 'अर्चि' / June 15, 2021

उर्मिला की व्यथा किसी ने न समझी

राम-सीता की व्यथा ही सबने समझी।

सुकुमारी उर्मिला सर्वदा उपेक्षित ही रही

नेपथ्य में ही वह सर्वदा छिपकर रही।।

माना वैदेही का त्याग बहुत बड़ा था

लेकिन उसका त्याग भी क्या कम था।

पति की आज्ञा को ही शिरोधार्य किया

वचन में उसको सौमित्र ने बांध लिया।।

हिना का रंग भी तो अभी उतरा न था

अभी ठीक से किसी को समझा न था।

प्रियतम के सहसा जाने की बात सुनी

सुनते ही प्यारी-सुनहरी रातें ख्वाब बनी।।

भले ही वन-कठिनाइयां उसने न झेली

विरह की ज्वाला में तो दिन-रात जली।

चौदह वर्ष-वनवास तो उसने भी काटा

तपस्विनी बन महल में ही जीवन काटा।।

भले पति का संग उसे मिल नहीं पाया

पर अकेलापन तो उसी के हिस्से आया।

महल में रहते हुए भी महान तप किया है

धरा को ही शैय्या उसने बना डाला है।।

लक्ष्मण ने भ्रात प्रेम में अपार वेदना दे डाली

कठोर तपस्या की नींव सौमित्र ने ही डाली।

प्रसाद में मौन व्यथा उसी की तो गूंजी है

लक्ष्मण का गौरवशाली चरित्र उसी से है।।

नारी का जीवन स्वयं ही एक तपस्या है

उर्मिला इसका ही ज्वलंत उदाहरण है।

व्यथा की अनकही कहानी भी वही तो है।

रामायण के पन्नों की विस्मृत कहानी है।।

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