Poems


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अरे मानव तू अब क्या बन गया

अर्चना कोहली 'अर्चि' / June 6, 2021

अरे मानव, तू अब क्या से क्या बन गया

तामसी गुणों को क्यों आज अपना लिया।

मानव होने की सही पहचान भूल गया

निज धर्म मानवता विस्मृत कर गया।।

मेरी सृष्टि का निरादर करता जा रहा

प्रकृति का अनावश्यक दोहन कर रहा।

मेरी कृति प्रकृति को प्रदूषित कर दिया

कृति मेरी बेरंग कर निरादर मेरा किया।।

नवरात्रि में देवी समझ जिसे पूजता रहा

निज दंभ में तेजाब से उसे ही जला रहा।

निज पालनकर्ता को भी तिरस्कृत किया

वृद्धाश्रम का रास्ता उनको भी दिखाया।।

निज स्वार्थ में रिश्ते-नाते सब भूल गया

स्वार्थ की तुला से सभी को तोलता गया।

माना आज तूने अपार धन-संपदा कमाई

लेकिन लोलुपता से खुशियाँ भी गँवाई।।

बिन मानवता के क्या मनुज रह पाएगा

नकली आवरण से कब तक जी पाएगा।

निज स्वार्थ से भीड़ में भी अकेला है

सबकुछ होते हुए तनाव से घिरा है।।

ओ मानव, अब तो स्वार्थ भूल सँभल जा

सात्विक गुणों को पुनरू आत्मसात कर।

परमार्थ को ही निज जीवन-ध्येय बना ले

मानव होने का सही मतलब समझ ले।।

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