हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / March 28, 2021
ओ माँ, अस्तित्व तेरा मैं कैसे नकारुँ
तेरे अक्षुण्ण प्रेम को कैसे भूल जाऊँ।
गर्भ में नौ महीने तक बड़े यत्न से रखा
अत्यंत कष्ट सहकर मुझे जन्म दिया।।
क्रोड में तेरी जीभर अठखेलियाँ करती
पल्लू पकड़कर साथ तेरे घूमती फिरती।
मेरी खातिर सारे दुख हँसकर पी जाती
निर्मल हास्य से सदैव ही सराबोर करती।।
इन्द्रधनुष की तरह माँ आप सतरंगी हो
विभिन्न रूप अपने भीतर ही समाए हो।
तपते रेगिस्तान में मृगमरीचिका सी हो
धुंध से घिरे अंबर में सुनहरी किरण सी हो।।
मेरे जीवन का दृढ़ आधार भी माँ आप हो
मेरे सृजन की बुनियाद भी आप ही हो।
हरेक रिश्ते से पहचान आपने ही करवाई
मेरी हरेक धड़कन में आप ही तो समाई।।
सृष्टि की सबसे सुंदर अनमोल कृति हो
सहनशीलता की अद्वितीय प्रतिमा हो।
वेद की ऋचाओं जैसी अत्यंत पावन हो।
पीयूष की तरह अनश्वर भी कहलाती हो।।
कल्पनाओं को हमारी उड़ान आपने दी।
सही पथ पर डटे रहने की सीख भी दी।
नव रस का अद्भुत कोश भी माँ आपमें है
सरस्वती दुर्गा पार्वती भी आपमें ही हैं।।
पूरी कायनात में आप हैं बहुत अनमोल
आपके निश्चल प्रेम का नहीं कोई मोल।।
गुणों की अदभुत खान माँ सब तुम्हें ही कहते
इच्छापूर्ति में कल्पतरु आप ही को तो कहते।।
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