हमारी संस्कृति
October 28, 2023
अर्चना कोहली 'अर्चि' / February 18, 2017
रुनझुन-सी प्यारी बरखा रानी आई
झोली में भरकर नन्ही-नन्ही बूँदें लाई।
रिमझिम फुहारें मन को लगें अति प्यारी
महक उठे वन-उपवन की क्यारी-क्यारी।।
कजली गाने को सब जन मचल उठें
प्यासी नदियाँ-झरने सब किलक उठें।
खुशियों की सौगात भरकर नन्ही-बूँदें आईं
गरमी से राहत हम सबने मिलकर पाई।।
शुष्क धरा भी हर्ष-से गमक उठी
कलरव करते पंछियों की फौज भी छाई।
हरियाली का साम्राज्य फिर से छाया
ठुमक-ठुमककर मोर ने सुंदर नाच दिखाया।।
पीहू-पीहू कर पपीहा कोलाहल मचाएँ
बच्चे युवा सब प्रमुदित हो झूमें-गाएँ।
पुष्पों पर बैठ तितलियाँ-भँवरे मधुर गीत सुनाएँ
टर्र-टर्र करते दादुर अपना प्यारा राग सुनाएँ।।
अलसाई कलियाँ भी हौले से मुसकाईं
देखो, देखो, मदमाती चाल से बरखा रानी आई
तरु-पल्लव भी उल्लसित होकर झूमें -लहलहाएँ
सूर्य-चंद्र भी घबराकर बादलों में छिप जाएँ।।
रुनझुन-सी प्यारी बरखा रानी आई
झोली में भरकर नन्ही-नन्ही बँदें लाईं।।
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