Poems


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शक्ति का अद्भुत पुंज नारी

अर्चना कोहली 'अर्चि' / February 5, 2017

स्त्री हूँ पर अब शक्तिहीन नहीं
शक्ति का दृढ़ पुंज अब कहलाती।
ऐ मनचले पुरुष शोषण न सहूँगी
अब मैं कभी सिसकियाँ भरूँगी।।

नीर की बदली नहीं कठोर चट्टान हूँ
सीता नहीं द्रौपदी का प्रतीक हूँ मैं।
गिरफ्त में मुझे रखकर पछताओगे।
शस्त्र उठा विध्वंस तेरा कर दूँगी।

बेचारी न मुझे समझना ओ मनचले
बंधन में जकड़ने का यत्न न करना।
बहादुरी-चतुराई में सानी नहीं मेरा
तेरी कैद में ज्यादा देर न रहूँगी।।

काली-दुर्गा भी समाए हैं मेरे भीतर
गौरी-भवानी का रूप भी मेरे अंदर।
हस्त-बंधन से कैसे जकड़ पाओगे
आत्मबल से सारे बंधन तोड़ दूँगी।।

कमजोर समझने की भूल न करना
शक्ति को मेरी तुम कम न समझना।                                 

अर्चना कोहली
मौलिक और स्वरचित

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