आवरण
September 20, 2016
अर्चना कोहली 'अर्चि' / December 31, 2023
चलते झोंके सर्द हैं, आई ऋतु अब शीत।
गरम चाय अब भा रही, जोड़ी उससे प्रीत।।
छाई चादर धुंध की, ठिठुरे मेरे गात।
आँखमिचौनी सूर्य की, बर्फीली अब वात।।
कौन बनाए चाय अब, करते रहें विचार।
बारी किसकी आज है, होती है तकरार।।
मिल जाए बस हाथ में , सुबह-सवेरे चाय।
कैसे पूरी साध हो, निकले कब यह राह।।
सपने देखूंँ मैं सदा, ढाबा होता पास।
देती ऑर्डर जब कभी, आते भरे गिलास।।
चर्चा बस हो प्यार की, मुख पर हो मुसकान।
बदले-बदले हों पिया, आया इत्मीनान।।
मन ही मन में हँस रहे, कैसा लगा जुगाड़।
मौसम का हम लें मज़ा, करके बंद किवाड़।।
बिना नशे हम झूमते, होता इसका पान।
मन माँगे अब मोर है, जब बढे तापमान।
बढ़ती है दीवानगी, जब हुई मुलाकात।
बिन सभी अधूरा लगे, दिन की है शुरुआत।।
सोई बिस्तर तानकर, ठंडे पड़ते पाँव।
साजन होते रोष में, कैसे चलता दाँव।।
अर्चना कोहली 'अर्चि'
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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