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रंगा सियार
अर्चना कोहली 'अर्चि' / July 21, 2025
पंचतंत्र की एक प्राचीन-सी कहानी,
यह कहानी है बहुत जानी-पहचानी।
सुंदर जंगल में रहता एक श्रृंगाल था,
पैर में चोट लगने से हुआ बेहाल था।।
कई दिन तक मिला नहीं उसे भोजन,
भूख से कमज़ोर हो गया उसका तन।
पहुँचा बस्ती खोजने के लिए आहार,
अचानक कुत्ते पीछे पड़े करने प्रहार।।
बचने को कूद गया वह ड्रम के अंदर,
नीला रंग घुला रखा था उसके भीतर।
पूरी रात उसमें रहने से चढ़ा नीला रंग,
कुछ क्षण तक देख यह हो गया दंग।।
अचानक कुटिल नीति दिमाग में आई,
वन जा ईश्वर दूत होने की बात बताई।
सब जानवरों ने राजा उसे लिया मान,
किसी को भी सच्चाई का हुआ न भान।।
राज़ खुलने के डर से भगा दिए सियार,
बैठे-बैठे मौज मना खुशी से करे विहार।
सहसा एक रात सुनी सियार-आवाज़,
हुआँ-हुआँ करने से गिरी उसपर गाज।।
बोलने से खुल गई उसकी झूठ की पोल,
क्रोध से सबने मिलकर बजाया था ढोल।
मिली थी मूर्ख बनाने की सज़ा उसे आज,
गँवाई जान थी, जब खुल गया था राज़।।
सीख मिली कहानी से हमें यह अनमोल,
झूठ का होता नहीं कभी भी कोई मोल।
पर्दाफाश होता है जो कहे झूठे ही बोल,
इसलिए हमेशा सच को ही दिल में घोल।।
अर्चना कोहली "अर्चि"
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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