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अतिथि कब तुम जाओगे
अर्चना कोहली 'अर्चि' / July 31, 2024
"किसका फोन था जी, जिसे सुनते ही आप परेशान हो गए हैं।" पति जितेश के फोन रखते ही मीनाक्षी ने कहा।
"सुनोगी तो तुम्हारे हाथों के भी तोते उड़ जाएँगे। मेरे दूर के चाचा जी रितेश तो तुम्हें याद ही होंगे।
"सुबह-सुबह किनका नाम ले लिया। उन बिन बुलाए मेहमान को भला कौन भूल सकता है। नाकों चने चबवा देते हैं। आज उनको हमारी याद कैसे आ गई?"
"तीन दिन बाद रितेश चाचा जी आ रहे हैं। कह रहे थे, तुम सबकी बहुत याद आ रही है। इस बार पूरा एक महीना रहेंगे।"
"क्या! अभी दो महीने भी पूरे नहीं हुए उनको गए हुए, फिर से आ रहे हैं। वो भी महीनाभर। साल में कम से कम छह बार तो आते ही हैं। ऊपर से हर काम में नुक्ताचीनी करते हैं। आप उनका होटल में रहने का इंतजाम कर दीजिए। मुझसे नहीं होगी, उनकी खातिरदारी।"
"क्या बात कर रही हो मीनाक्षी। पता तो है , इससे कितनी बदनामी होगी। सबको जा जाकर हमारी बुराई करेंगे।"
"मुझे तो अभी से नाम सुनकर चक्कर आ रहे हैं। कुछ करो जी नहीं तो मैं तो चली मायके। आप ही सँभालिए अपने दूर के चाचा जी को। वैसे भी आजकल बच्चों की छुट्टियाँ चल रही हैं। ये चाचा जी तो आए दिन हमें परेशान करने आते रहते हैं, इस कारण हम तो घर से ही नहीं निकल पाते।
"अरेरेरे, गुस्सा मत हो मीनाक्षी। मिलकर कोई समाधान निकालते हैं न।"
"सुनिए जी। याद आया। शालिनी दीदी के घर भी कोई चिपकू मेहमान आए थे। उन्होंने योजना बनाकर उन्हें भागने पर विवश कर दिया था। उनसे पूछते हैं। आप फोन लगाइए न।"
"तुम्हीं बात करो।"
"जितेश मिल गया समाधान। कान इधर लाओ। दीवारों के भी कान होते है।" कहकर मीनाक्षी धीरे-से जितेश के कान में फुसफुसाई।
"वाह। मान गए दीदी को।" जितेश ने कहा।
तीन दिन बाद चाचा जी ने घर में प्रवेश करते कहा, बहू जल्दी से एक कड़क चाय तो पिलाओ। बहुत थक गया हूँ।"
"पर चाचा जी मुझे अच्छी चाय बनानी कहाँ आती है। दिन में कितनी बार तो आप कहते थे, बड़े-बड़े शेफ मेरी जैसी चाय नहीं बना सकते। आप ही बना लीजिए न और हाँ मेरे लिए भी। फिर मुझे अपनी सहेली के साथ बाजार जाना है। घर का ध्यान रखिएगा और बच्चे जब आ जाएँ तो उन्हें खाना खिलाकर सोने को कह दीजियेगा। और हाँ, जब तक आप हैं, बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी आपकी। कुछ दिन तो इन शैतानों से पीछा छूटे।"
रात को•••
"बहू दस बज गए हैं। क्या आज खाना नहीं बनेगा?" जितेश और मीनाक्षी को आराम से टीवी पर फ़िल्म देखते देख चाचा जी ने रात को कहा।
"वो आज मैंने मूँग की दाल की खिचड़ी बनाई है। बच्चों ने तो मैगी बनाकर खा ली। मैं भी शाम को सहेलियों के साथ डोसा खाकर आई थीं। जितेश ने तो पहले ही मना कर दिया था खाने को। आप खिचड़ी गरम करके खा लीजिएगा।"
"बहू। मुझे खिचड़ी पसंद नहीं। मेरा पेट थोड़े खराब है।"
"मुझसे तो इस समय नहीं बनेगा। मेरी पसंद की फिल्म आ रही है। बहुत समय बाद मौका मिला है।, कहकर मीनाक्षी मुसकराते हुए फिल्म देखने लगी।
सुबह अभी चाचा जी गहन निंद्रा में लीन थे कि चाचा जी को उठाकर जितेश ने कहा, आज मुझे जल्दी जाना है। आज आप बच्चों को स्कूल छोड़ आइएगा। मैं ऑटो बुलवा देता हूँ।"
"चाचा जी। जा ही रहे हैं तो आते समय मदर डेयरी से फल-सब्जियाँ लेते आइएगा। रास्ते में ही है। इस समय ताज़ी मिलती है।" थैला लेते जाइयेगा। यहाँ पर प्लास्टिक पर रोक है।" पीछे से मीनाक्षी ने कहा।
पर बहू, मुझे तो मॉर्निंग वॉक पर जाना है।"
"यह भी तो मॉर्निंग वॉक है। और हाँ चाचा जी थोड़ी जल्दी आइएगा, तीन दिन तक शीला नहीं आएगी। सफाई का ज़िम्मा आपका।" अपनी हँसी को दबाते हुए मीनाक्षी ने कहा।
"क्या कह रही हो बहू। मैं और सफाई।"
"लगता है, आप भूल रहे हैं। हर बार ही आप शीला को कोने-कोने से कचरा निकाल कर दिखाकर कहते थे, इसे कहते हैं सफाई।"
"वो बहू। मेरी तबियत सही नहीं लग रही, इसलिए आज शाम को ही मैं घर के लिए निकल रहा हूँ। मैं बताना भूल गया था।"
"क्यों क्या हुआ चाचा जी? आप तो महीना रहने के लिए आए थे। मेरी मानिए, पूरा दिन फाका कीजिए, ठीक हो जायेंगे।"
जब से आया हूँ, फाका ही तो कर रहा हूँ, मन ही मन बुदबुदाते हुए रितेश चाचा जी ने कहा।
"कुछ नहीं बहू। मुझे जाना होगा। घर जाकर ही ठीक होऊँगा। बस मेरे लिए एक ऑटो मँगवा दे।" कहकर चाचाजी ने फटाफट अपना सामान कमरे से उठाया।
अगले दिन मीनाक्षी ने ननद शालिनी को फोन करके उसे और दामाद को खाने पर बुलाया। हँस-हँसकर रितेश चाचा के भागने का किस्सा सुनाया।
उस दिन के बाद से चाचा जी में ऐसा परिवर्तन आया कि किसी के बुलावे पर भी जाने से पहले सौ बार सोचते हैं।
अर्चना कोहली 'अर्चि' (नोएडा)
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