

Poems

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श्राद्ध या दिखावा!
अर्चना कोहली 'अर्चि' / September 17, 2025
श्रद्धा का दूसरा नाम श्राद्ध
क्या सच में,
उनके प्रति पहले कभी
दिखाई आस्था,
अंतर्मन में जरा लेना झाँक।
अर्पण-तर्पण हों पितृपक्ष में
क्या तृप्त कर पाए,
जीवित रहते उनको
खिलाई कभी प्रेम से,
उनको तुमने पेटभर रोटियाँ ?
जगत के सामने यह जताया,
बहुत प्यार किया था,
उनसे तुमने
पर वास्तव में तो,
दुख में डूबे रहें दोनों नयन।
हाथ जोड़ तसवीर के आगे
जलाया था दीपक,
पर जब वे थे,
तब तो तुमने उन्हें
कटु वचन बोल नित जलाया।
पूर्वजों की पसंद के पकवान
बना रहे श्राद्धपक्ष में,
पर क्या जिंदा रहते
पूछी उनसे थी उनकी पसंद।
विधि-विधान से रीत निभाई
पर अकेलापन बाँटा कभी।
यह कैसा श्राद्ध!
जहाँ मृत का सम्मान
और जिंदा का करते अपमान।
अर्चना कोहली 'अर्चि' (नोएडा)
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