

Poems

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स्त्री हूँ पर•••
अर्चना कोहली 'अर्चि' / September 05, 2025
स्त्री हूँ, पर
अभी नहीं टूटी मैं,
मानी कहाँ मैंने
हालात से हार,
भले थक गई
पर रुकी कहाँ,
मनोबल से
बढ़ती ही गई आगे।
हर युग में ली गई
मेरी परीक्षा,
खरे सोने-सी उससे
निखर गई,
कितनी बार
बिखरी लटों-सी,
उठकर फिर
खड़ी शैल-सी।
अहम मैं मुझे
रौंदा विषधरों ने,
अश्रुओं को मेरे
समझा जीत,
भले कुछ पल को
टूट मै गई,
उठ खड़ी हुई
फिर शक्ति जुटा।
जितनी बार करोगे
अपमान तुम,
उतनी बार
दूँगी मुँहतोड़ जवाब,
जितनी बार
मुझ पर प्रहार,
उतनी बार होगा
आघात तुम पर।
स्वप्न भले मेरे टूटे
पर हिम्मत नहीं,
भले पंख नहीं
पर जज्बा उड़ने का,
स्त्री हूँ
पर रुकी नहीं,
चलती रहती
अनवरत लहरों-सी।
मंजिल से पहले
लिया कहाँ विराम,
भाग्य को
बदल दिया
मेहनत से,
कमजोर नहीं
शक्ति का प्रतीक स्त्री,
जन्म लिया
स्त्री रूप में
गर्व है मुझे।
अर्चना कोहली 'अर्चि' (नोएडा)
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