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युद्ध एक विभीषिका
अर्चना कोहली 'अर्चि' / September 03, 2025
मौत का है तांडव मचा
रक्त-रंजित है धरा,
चीख उठी हैं दिशाएँ
अंगार बरसे हैं गगन से,
गुबार में है डूबी धरा।
तोपों से निकले गोले
साँस थामते हैं पल-पल,
डरी सहमी-सी है मानवता,
क्रूर क्रीड़ा देख काल की
मची हुई है त्राहि चहुँओर,
मँडराते गिद्ध-कौए नभ में
असुरों का है अट्टाहास।
अहम के इस युद्ध में
अपनों का रक्त बहाते जाना,
क्या कहते हैं इसे ही मनुजता!
तुम तो ईश्वर की अनुपम कृति हो,
कहाँ से आई तुममें यह निष्ठुरता
हे मनुज! बंद करो अब
यह युद्ध तुम विनाश का,
क्यों झोंक रहे हो स्वयं को
युद्ध की इस भीषण विभीषिका में!
अर्चना कोहली 'अर्चि'
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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