

Poems

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हिंदी हमारी पहचान
अर्चना कोहली 'अर्चि' / September 17, 2025
एक एक वर्ण पढ़कर हिंदी के
निरक्षरता से,
साक्षरता की ओर ,
हम बढ़ाते जाते अपने कदम।
अ से अनपढ़, ज्ञ से ज्ञान तक
की यात्रा
प्यारी हिंदी के,
बल पर हम सभी करते पूर्ण।
फिर क्यों वह अपने ही घर में
उपेक्षित-सी,
पीछे खड़ी अंग्रेजी के
चुपचाप ही बहा रही है आँसू।
हिंदी पखवाड़ा नाम पर अपनी
राजभाषा हिंदी,
आज सिमट गई
पुस्तक-पत्रिकाओं-पोस्टरों में।
बच्चों को अपने हम सब पढ़ाते
अंग्रेजी स्कूलों में,
हाय-हैलो में उलझकर
संस्कृति को ही अपनी भूल गए।
हिंदी बने राष्ट्रभाषा, देखा था
स्वप्न महात्मा गांधी ने,
देखा था प्यारा
इतने सालों बाद भी वह अधूरा।
जिस हिंदी ने हमें दी है पहचान
नहीं बोलने से उसे
कोई भी शर्म करो,
गर्व से सभी बोलो, हिंदी है हम।
अर्चना कोहली अर्चि (नोएडा)
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